लंदन में जन्म, ब्रिटेन में कानून का अध्ययन किया और बाद में भुज के पास नारणपरा की मंजू केराई ने 25 साल की उम्र में लंदन छोड़ दिया और अपने मूल कच्छ आ गई थी। यहां आकर वह स्वामीनारायण संप्रदाय में एक साध्वी बन गए और भगवान की भक्ति की को पसंद किया।
मंजू कहती हैं “भले ही मैं लंदन में पली-बढ़ी थी, लेकिन अपने मूल कच्छ के लिए संस्कृति और लगाव अद्वितीय था।” इसीलिए घर लौटने और साध्वी बनने की इच्छा प्रबल हो गई।
मंजू के पिता लालजी केराई लंदन में एक सुरक्षा व्यवसाय चला रहे थे। वह अब मंदिर में पुजारी के रूप में सेवा कर रहे हैं। उनकी माँ एक बेकरी पर काम करती हैं। मंजू का कहना है कि किशोरावस्था में उन्हें दुनिया से प्यार हो गया।
मंजू एक ओर हरि जाप करती हैं, तो वहीं दूसरी तरफ वह लैपटॉप पर हरिभक्तों को ऑनलाइन प्रवचन देती हैं। उन्हें सुनने के लिए देश-विदेश के लोग शामिल होते हैं।
वह कहती है की यदि आप शिक्षित हैं, तो मन में संकीर्ण विचार प्रवेश नहीं करते हैं। मैं युवा हूं इसलिए आज के युवाओं को उनकी भाषा में सिखाती हूं। गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी की मेरी निपुणता के कारण, मैं तीनों भाषाओं में शास्त्रों का ज्ञान प्रदान करती हूं। कानून में स्नातक की डिग्री में जिस तरह समाज के अपराधों के लिए सजा निर्धारित है, ऐसे ही धर्म के कानून पाप के लिए प्रायश्चित निर्धारित करते है।